कपर्दक भस्म (वराटिका भस्म) के लाभ, औषधीय प्रयोग, मात्रा एवं दुष्प्रभाव

कपर्दक भस्म (जिसे कपर्दिका भस्म, कोरी भस्म, वराटिका भस्म और कौड़ी भस्म के नाम से भी जाना जाता है) एक आयुर्वेदिक निस्तापित निर्माण है जिसे पेट की बीमारियों जैसे पेट दर्द, शीघ्रकोपी आंत्र सिंड्रोम, सूजन, पक्वाशय संबंधी अल्सर, भूख ना लगने, आंतों की गैस आदि में उपयोग किया जाता है।
हालांकि, इसका प्रभाव ऊष्ण होता है, लेकिन पेट में इसका क्षारीय प्रभाव होता है, जो पेट में अम्ल स्राव को संतुलित करता है। इस प्रकार, यह मुंह के खट्टे स्वाद, सीने में जलन और अजीर्ण (अपच) में राहत देता है।
घटक द्रव्य (संरचना)
कपर्दक भस्म का निर्माण कपर्दिका से किया जाता है। कौड़ी भस्म बनाने के लिए 3 से 5 ग्राम के वजन वाले पीले रंग के कौड़ी शंख उचित होते हैं।
रासायनिक संरचना
कपर्दक भस्म में मुख्य रूप से कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3) होता है। इसमें अन्य खनिज भी उपस्थित होते हैं। इसमें उपस्थित अकार्बनिक और कार्बनिक घटक निम्नानुसार हैं:
राख | 2.06% |
कैल्शियम | 19.32% |
नाइट्रोजन | 0.72% |
जैविक कार्बन | 1.09% |
फास्फोरस | 0.62% |
सोडियम | 1.36% |
गंधक | 0.94% |
बोरोन | 0.06 पीपीएम |
तांबा | 0.42 पीपीएम |
लोहा | 113.6 पीपीएम |
मैंगनीज | 19.62 पीपीएम |
मोलिब्डेनम | 0.03 पीपीएम |
जस्ता | 1.48 पीपीएम |
क्षाराभ | 0.05 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम |
फ्लवोनोइड्स | 0.21 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम |
ग्लाइकोसाइड | 0.05 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम |
लिग्निन | 0.04 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम |
टैनिन | 0.19 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम |
संदर्भ और श्रेय: वर्तिका (कपर्दिका) भस्म पर रासायनिक मानक अध्ययन, कैरिज़म, सस्त्र विश्वविद्यालय, थंजावुर |
आयुर्वेदिक गुण
रस | कटु, तिक्त |
गुण | लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण |
वीर्य | ऊष्ण |
विपाक | कटु |
प्रभाव – उपचारात्मक प्रभाव | पाचक |
दोष कर्म (भावों पर प्रभाव) | कफ (Kapha), साम पित्त (Pitta) और साम वात (Vata) को शांत करता है |
धातु प्रभाव | रस |
अंगों के लिए लाभदायक | उदरीय अंग (पेट, यकृत, प्लीहा, पाचनांत्र), आंखें और फेफड़े |
संभावित क्रिया | लेखना |
नोट: उपरोक्त आयुर्वेदिक गुणों के अनुसार कपर्दक भस्म की क्रिया कफ और वात दोषों पर होती है, लेकिन यह भी क्षारीय औषध भी है, जो पेट में अम्ल स्राव को संतुलित करती है। आयुर्वेद के अनुसार, पित्त में अम्ल गुण होते हैं। कौड़ी भस्म पित्त के अम्ल गुणों का काम कर देता है। इसलिए, इसे पित्तशामक भी माना जाता है।
औषधीय कर्म (Medicinal Actions)
- पाचन उत्तेजक
- अम्लत्वनाशक
- पीड़ा-नाशक
- आक्षेपनाशक
- वायुनाशी
- वमनरोधी
- आम पाचक
- अध्यमान रोकने वाला
- व्रण नाशक
- कफनाशक
- स्तम्मक
चिकित्सकीय संकेत (Indications)
- पेट दर्द
- सूजन
- पेट फूलना
- ग्रहणी संबंधी व्रण
- भूख में कमी
- शीघ्रकोपी आंत्र सिंड्रोम
- मुंह का खट्टा स्वाद
- अजीर्ण (अपच)
- बाहरी कान से स्राव
कपर्दक भस्म के उपयोग और लाभ
कपर्दक भस्म में उच्च जैवउपलब्धता है, इसलिए यह कुछ रोगों में तत्काल प्रभाव दिखाती है। यह पेट के स्राव के साथ प्रतिक्रिया करता है, और अम्ल को निष्क्रिय करता है। इसकी मुख्य क्रिया विषाक्त पदार्थों पर पायी जाती है, जो कमजोर पाचन के कारण उत्पन्न होते हैं। यह भूख और पाचन में सुधार लाता है, जिससे विषाक्त पदार्थों के गठन को कम करने और उत्पादित विषाक्त पदार्थों को खत्म करने में मदद मिलती है।
सूजन और आँतों में वायु
कपर्दक भस्म में वायुनाशी, सूजन नाशक और वात शामक गुण होते हैं, जो सूजन या उदर विस्तार, आँतों की वायु और अत्यधिक पेट फूलने से राहत प्रदान करते हैं। इन मामलों में, इसका प्रयोग गाय के घी और मिश्री (चीनी) के मिश्रण के साथ किया जाता है। इसके अतिरिक्त, ऐसे मामलों में कपर्दक भस्म के साथ आरोग्यवर्धिनी वटी (Arogyavardhini Vati) का उपयोग भी उपयोगी होता है।
पेट में दर्द
जैसा की चर्चा की गई है कि कपर्दक भस्म में वायुनाशी और आक्षेपनाशक गुण होते हैं, जो पेट दर्द और ऐंठन में सहायक होते हैं। जब दर्द हल्का होता है और पेट में भारीपन का एहसास होता है तो यह सहायक होता है। इसका प्रयोग गाय के घी और मिश्री (चीनी) के साथ किया जाना चाहिए।
उबकाई
कपर्दक भस्म असुविधाजनक उबकाई, मुंह के खट्टे स्वाद या बेस्वाद डकार में लोगों के लिए बहुत उपयोगी है। यह पाचन को सुधारकर और पाचन तंत्र में वात पर क्रिया करके वायु निर्माण को रोकता है।
अति अम्लता में उल्टी
स्वर्ण माक्षिक भस्म के साथ कपर्दक भस्म खट्टी और बलगम वाली उल्टी में लाभदायक है। यह पित्त के अम्ल गुणों को काम करती है और इन लक्षणों को रोकती है।
सुरक्षा प्रोफाइल
कपर्दक भस्म चिकित्सीय देखरेख में, अनुशंसित खुराक में और उचित सहायक के साथ लेने पर काफी सुरक्षित है।
दुष्प्रभाव
हालांकि, रोग के अनुसार उपयुक्त सहायक के साथ समझदारी से उपयोग किए जाने पर इसका कोई दुष्प्रभाव प्रदर्शित नहीं होता है। इसे जीभ पर नहीं रखना चाहिए, क्योंकि इससे आपकी जीभ पर दरारें पड़ सकती हैं। इस दुष्परिणाम से बचने के लिए, आपको हमेशा याद रखना चाहिए कि इसको गाय के घी, गिलोय सत्त (Giloy Sat) या शहद जैसे सहायक के साथ लिया जाना चाहिए।
संदर्भ
- Kapardak Bhasma (Varatika Bhasma)– AYURTIMES.COM